Sadhana Shahi

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बेटी, मांँ की सखी कविता-04-Feb-2024

स्वैच्छिक विषय-बेटी, मांँ की सखी

खू़बसूरत हो इतनी ज़िंदगी, देखकर के मन गुलज़ार हो। सदा,कर्म ऐसा करना बेटा, बेगाने को भी तुझसे प्यार हो।

तुझमें चिड़ियों की चहचहाहट हो, निश्चल तेरी खिलखिलाहट हो। तुझे देखने से उदासी दूर हो जाए, तेरे कदमों की ऐसी आहट हो।

अकेला शब्द ना कभी बनना, बनना सदा तू क़ाफिया। मुकम्मल कर देना ग़ज़ल को, ऐसी बनना सदा तू सोफिया।

बेटी, सखी, मेरी परछाईँ, बनना सदा मेरा मन। तुझको जो भी जी भर देख ले, करने लगे सदा सम्मान।

साधना शाही, वाराणसी

ये बेटी ना मांँ की साया है, खुशियों को इसने जाया है। इनसे ही घर में रौनक है, इसने ही घर को सजाया है।

जिस दिन ये धरती पर आईं, मानो खुशियों की गठरी लाई। कुछ मूरख थे जो व्यथित हुए, हमारे गोद में थी लक्ष्मी आई।

हम हैं लक्ष्मी की चाह करें, पर घर की लक्ष्मी ना पूजें। जो इन्हें उपेक्षित करता है, माँ ना उसका भंडार भरें।

जहांँ इनकी किलकारी गूँजे, वहांँ खुशियांँ हैं वास करें। ये वो जादू की झप्पी हैं, ना मात-पिता को निराश करें।

साधना शाही, वाराणसी

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4 Comments

Alka jain

06-Feb-2024 11:23 AM

Nice

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Mohammed urooj khan

06-Feb-2024 12:55 AM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Milind salve

05-Feb-2024 12:40 PM

Nice

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